मानसिक लालसा

 किसी भी तकनिकी जाकारी आपके लिए तभी महत्व रखेगी जब आपमें सीखने की लालसा हो और ये निश्चय कर लिया हो की मुझे ये अमुक कार्य हर हाल में करना है।हरेक इंसान किसी काम् को अपने मानसिक पटल पर पुरा करने को अंजाम देता है।आपको एक बिचार बनाना है-'मै समाज मे लोकप्रिय और सम्मानित बनने के लिए अपने ब्यक्तित्व मे सुधार लाना चाहता हुँ।'। परामर्श से स्वाभाब नहीं बदला जा सकता है क्योकि जिसकी जैसी प्रवृति होती है बैसा ही वो पुनः हो जाता है।जिस तरह पानी का स्वाभाब शीतल होना है पानी को जितना चाहो गरम करो जल तो सकता है मगर पुनः शीतल हो जाता है।इसलिए किसी को परामर्श देना या खुद पर लागु करना तभी कारगर साबित होगा जब वो रोजमर्रा की आदत बन जाति है।             आज  के युग मे सभी चाहते है कि उनके व्यक्तित्व का विकास हो और लोग उनको सराहे एवं उन्हे सम्मान की दृष्टि से देखा जाये।आज से दो दशक पहले ब्यक्तित्व विकास के सम्बन्ध मे बहुत जाग्रति हुयी है ऐसा नहीं है कि भारतीय संस्कृति मे ब्यक्तित्व संयोजन की अवधारणा का आभाव रहा हो ।भारतीय संस्कृति मे गुरुकुल मे रहते हुए बच्चें को व्यक्तित्व विकास की शिक्षा प्रदान की जाती थी।                                                            समय के साथ हर चीज मे पारिवर्तन आता है ।हमारी शिक्षा प्रणाली मे भी अंतर आया ।अब शिक्षा का उद्द्येश्य यही रह गया है कि किसी तरह से रोजगार मिल जाये वो भी सरकारी जिससे की लाइफ सेट हो जाये चाहे उसके लिए वो योग्य ना हो या कोई रिश्वत देनी पड जाये तो देते है ।देश की शिक्षा नीति मे काफी कमिया है जिस बजह से प्राथमिक स्तर के बच्चों को भी पढ़ाई से मानसिक तनाव होने लगा है।जिस पढ़ाई से ब्यक्तित्व संवरना चाहिए ,वह पढ़ाई तनाब और अबसद का करण बन रही है।शिक्षा के केंद्र भी रोजगार का केंद्र बन गये है।सरकारी स्कूलों मे शिक्षक पढ़ाना नही चाहते है जबकि उन्हें अच्छी सैलेरी मिलती है और मजे की ये बात् देखो जो सरकारी शिक्षक होता है वह अपने बच्चों को सरकारी स्कूल मे पढ़ाना नहीं चाहता ।शिक्षकों का भी उद्द्येश्य निजी संस्थान खोलकर धन कमाना मात्र रह गया है।अभिवावकों को भी अपने बच्चों से ज्यादा उम्मीदें हो गयी है वो चाहते है कि हमारा बच्चा कक्षा मे प्रथम आये।लेकिन कक्षा मे सभी बच्चें प्रथम नहीं आ सकते है प्रतिस्पर्धा का स्तर काफी बढ़ चुका है।इसी कारण युवकाल मे ही ब्यक्ति मे दोष और विकार पैदा होने लगे है।                           आबस्यकता आविष्कार की जननी है 'इस दिशा मे कार्य करने की आवश्यकता है।मनोचिकित्सकों कि आवश्यकता एकदम से बढ़ गयी है पहले जो कार्य माता पिता करते थे जैसे अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देना,प्रेम से रखना ,बे लुप्त हो चुके है माता पिता के पास बच्चों के लिए समय नहीं है।जरूरतें बढ़ गई है और माता पिता दोनो को ही रोजगार करने की आवश्यकता होने लगी।इस कारण बच्चों के लिए उनके पास समय नहीं रह गया है।छोटे बच्चों स्नेह,सुरक्षा तथा आरंभिक संस्कारों की आवश्य्कता थी जो उन्हे नौकरों से प्राप्त नहीं हो सकते थे। यही बच्चें आगे चलकर मानसिक कुंठिता के शिकार हो जाते है।                                                                  भारतबर्ष में संयुक्त परिवार प्रथा थी और बच्चों को संस्कारित जीवन प्राप्त होता था सत्तर के दशक मे युबाओं की मानसिकता का बुरा दौर आरम्भ हुआ।इन कारणों को जिम्मेदार मना गया।। 1.पढ़ाई मे कम्पटीशन का होना।                                         2.एकल परिवार का चलन मे आना ।                                   3.माता पिता दोनो के द्वारा ही रोजगार करना ।                     4. आर्थिक विषमता से खिन्नता ।                                       5.बेरोजगारी का शिकार होना।उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बड़ भी योग्यता के अनुकूल रोजगार न मिलना ।                         6.भ्रष्टाचार ,भाई भतीजाबाद एबम अनैतिक लोगो को सफल होते देखकर उनके मन मे कुंठाओं का जन्म लेना। ।               7.बेरोजगारी की स्थिति मे ही वैबाहिक जिम्मेदारी का आना ।           सुखमय जीवन जीने के लिए कामयाब होना जरूरी है।कामयाबी धन कमाना ही नहीं होता है धन तो जरूरी है ही ,धन एक साधन है सुखमय जीवन के लिए मगर एक कामयाब इंसान वो होता है जो हरेक क्षेत्र मे कामयाब होता है जैसे सामाजिक कर्तव्य,परिवार के कर्तव्य आदि जो भी इंसान अच्छे से निभाता है बास्तब मे वो ही इंसान कामयाब इंसान होता है।और कामयाबी के लिए मानसिक लालसा मुख्य भूमिका निभाती है ।कोई इंसान अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कोई भी काम् हो उसे आदत मे लेना चाहिए ।कोई कमी हो सकती है ,नुकसान हो सकता है मगर डर कर कोई काम ना करना भी गलत होता है गौतम बुद्ध जी ने कहा था इंसान दो गलतियां हर बार कर्रा है। 1. कोई काम् शुरु नहीं करना और दूसरी कोई काम को शुरु तो करता है मगर पुरा नहीं करता है।

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